Description
दिलीप कुमार रॉय, जिन्होंने संपूर्ण भारत में और विदेशों में एक गायक के रूप में ख्याति प्राप्त की, बंगाल के एक अत्यंत कुलीन और कला प्रेमी परिवार से आते हैं, जहाँ लंबे समय से उन्हें भारत में कला के पुनर्जागरण के प्रमुख सांस्कृतिक नेताओं में से एक के रूप में माना जाता है। उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक गायक और एक संगीत रचयिता के रूप में की। महात्मा गाँधी ने एक बार उनके विषय में कहा: “मैं निर्भीक रूप से दावा कर सकता हूँ कि भारत में या यों कहें कि विश्व में बहुत थोड़े ही लोग हैं जिनकी उनके जैसी आवाज़ है, इतनी समृद्ध और मीठी और गंभीर।” परंतु सदा ही आध यात्मिक जीवन के प्रति उनकी पिपासा उनके जीवन का प्रमुख भावावेग रहा है और उन्होंने अपने निजी संस्करणों में अनेक योगियों के बारे में लिखा है।
ये महात्मा गाँधी, रविन्द्रनाथ टैगोर, रोमां रोलां और बट्रॉड रसेल के मित्र और श्रीअरविन्द के शिष्य रहे और इन्होंने अंग्रेज़ी और बंगाली के एक लेखक के रूप में अपनी छाप बनाई। अब तक ये बंगाली में लगभग सत्तर और अंग्रेज़ी में एक दर्जन किताबें लिख चुके हैं।
यह पुस्तक एक महान् गुह्यवादी दार्शनिक योगी श्रीकृष्णप्रेम की कथा है जिसे भारत के एक प्रमुख गुह्यवादी कवि ने लिखी है। यह कथा है आत्मा के मार्ग पर चलने वाले दो समर्पित यात्रियों के बीच जीवनपर्यंत मित्रता की जो पारस्परिकर्ता को भगवान् के अंदर तादात्म्य बोध में परिणत कर देती है। इस पुस्तक का पठन वास्तव में ही एक आनंदप्रद और उद्बोधक अनुभव है। श्री दिलीप कुमार ने एक ऐसे व्यक्तित्व के विविधतापूर्ण अनुभव और ज्ञान के विषय में आम जनता के समक्ष गहन भावना और पैनी अंतर्दृष्टि से युक्त मनोहर प्रस्तुति की है जिन्हें रमण महर्षि ने वास्तव में “एक ज्ञानी और एक भक्त का एक अपूर्व संगम” बताया था।