Additional information
Binding | Hardbound |
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Pages | 464 |
ISBN | 978-81-931830 |
₹475.00
इन हजारों वर्षों में जो कुछ हम हिंदुओं ने किया है, चिंतन किया है तथा कहा है, हम जो कुछ हैं और जो कुछ बनने की चेष्टा करते हैं, उस सब के मूल में प्रच्छन्न रूप से स्थित है हमारे दर्शनों का स्रोत, हमारे धर्मों का सुदृढ़ आधार, हमारे चिंतन का सार, हमारी आचारनीति और समाज का स्पष्टीकरण, हमारी सभ्यता का सारांश, हमारी राष्ट्रीयता को थामे रखने वाला स्तम्भ, वाणी की एक लघु राशि, अर्थात् वेद। इस एक ही उद्गम से अनेकानेक रूपों में विकसित होने बाली असंख्य आयामी एवं उत्कृष्ट उत्पत्ति, जिसे हिंदू धर्म कहते हैं, अपना अक्षय अस्तित्व धारण करती है। अपनी प्रशाखा ईसाई धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म भी इसी आदि स्रोत से प्रवाहमान हुआ। इसने अपनी छाप फारस पर छोड़ी, फारस के द्वारा यहूदी धर्म पर, और यहूदी धर्म द्वारा ईसाई धर्म तथा सूफीवाद से इस्लाम धर्म पर, बुद्ध के द्वारा यह छाप कन्फ्यूशीवाद पर, ईसा एवं मध्यकालीन सूफीवाद, यूनानी और जर्मन दर्शन तथा संस्कृत के ज्ञान द्वारा यह छाप यूरोप के विचार एवं सभ्यता पर पड़ी। यदि वेद न होते तो विश्व की आध्यात्मिकता का विश्व के धर्म का, विश्व के चिंतन का ऐसा कोई भी भाग नहीं है जो वैसा होता जैसा कि वह आज है। विश्व की किसी भी अन्य वाक् राशि के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता।
Binding | Hardbound |
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Pages | 464 |
ISBN | 978-81-931830 |