Description
आधुनिक सभ्यता ने अपने छलावों और कोहरे का पर्दा मानव चिंतन और उद्यम के सभी क्षेत्रों पर डाला है। हालाँकि इसके निरे छिछलेपन और इसके खोखलेपन का बोध अधिक ग्रहणक्षम और सचेतन मनुष्यों के बीच उदय हो रहा है। स्वामी विवेकानन्द की मर्म तक जाने वाली गहरी दृष्टि और प्रेरणादायक शब्द इस कोहरे को दूर करके मानव जीवन और कर्म के लिए एक सच्चे आध्यात्मिक आधार की समझ प्राप्त कराने में सहायक सिद्ध होते हैं। उनके व्यक्तित्व में भक्ति, ज्ञान और कर्म का संगम उनकी वाणी को एक अनुपम शक्ति अथवा ओजस्विता से परिपूर्ण कर देता है। कुछ विषयों पर स्वामी विवेकानन्द के असंदिग्ध अथवा स्पष्ट विचार – जैसे आम तौर पर मानव जीवन में आध्यात्मिकता का स्थान और विशेषतः भारतीय संस्कृति और उसके भविष्य में आध्यात्मिकता का स्थान; जगत् के यूरोप-केंद्रीय दृष्टिकोण के द्वारा भारतीय इतिहास को विकृत किये जाना और उसके परिणामस्वरूप भारतवासियों की स्वयं के विषय में हीन-दृष्टि रखना, आदि – उनके शब्दों को ज्ञान और प्रेरणा के स्रोत बना देते हैं। उनके ओजपूर्ण शब्द इतने वर्षों से आज भी उतने ही सशक्त रूप से गुंजायमान हैं जितना कि वे उस समय गूँजे थे जब उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता की लड़ाई में एकमात्र अत्यंत महत्त्वपूर्ण प्रेरकशक्ति के रूप में तथा भारतीय संस्कृति को उसके अद्वितीय विकासपथ पर पुनः प्रतिष्ठित करने का कार्य किया था।